Written By Chinmay Anand
" ख्वाइश-ए-जिंदगी " यूं जो तुम बिखर से रहे हो, कही न कही निखर रहे हो तुम... बेशुमार है तो दिल मे ख्वाइशें, दिन-रात इल्मे उनकी बढ़ा रहे हो तुम... ख़ुद की तलाश करके तुमने, कशिश ख़ुद की बना रहे हो तुम, यूं जो तुम बिखर से रहे हो, कही ना कही निखर रहे हो तुम... तलब है जो तेरी शिद्दत से, रफ्ता-रफ़्ता समेट रहे हो तुम, होना अपने रास्तों के मुस्ताक, आहिस्ते.. जैसे महताब अपने अर्श के ,खुद को ख़ुद से बना रहे हो तुम... यूं जो बिखर से रहे हो तुम, कही ना कही निखर रहे हो तुम.... : चिन्मय आनंदDownload
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