Written By जितिन विभा
पानी को मैं कैसे भूलूँ , कैसे भूलूँ प्यास को । पानी का भी मजहब होता , देख लिया इतिहास को ।। ईद की वो सेवईयां भूले , भूले रंग गुलाल को । गले मिलन को आपस तरसे , तरसे हाल और चाल को ।। कौन व्रत है कौन है रोजा , कौन बैठा उपवास को ।।। पानी को मैं कैसे भूलूँ........ आज भी जिन्दा भेद पुराना , वर्षों से यहाँ पाला गया । कितने आशिफ मारे जाते , वर्षों से यहाँ उछाला गया ।। कौन कबीरा कौन है रहिमन , भूल बैठे इतिहास को ।।। पानी को मैं कैसे भूलूँ........ सिर की पगड़ी मैली हुई है , टोपी हुई हलाल है । कैसी उनकी मानवता है , कोई नहीं मलाल है ।। फूल जलाया देख उजाला , दफ़न हुए प्रकाश को ।।। पानी को मैं कैसे भूलूँ .......... चाँदनी बेहद प्यारी है , और चाँद पराया लगता है । हर इंसां में मज़हब ढूंढें , पंत डराया लगता है ।। खूनी वंदना क्रूर इबादत , घायल हुई अरदास को ।।। पानी को मैं कैसे भूलूँ ...........Download
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