Written By Annem
बैठ के कोने में यूं ही गुनगुना रही हूँ जाने कौन से बीते लम्हों को सोच कर मुस्कुरा रही हूँ , कहीं भूल ही गई थी खुद को इस दुनिया की चकाचौंध में, आज खुद को याद करके खिल खिला रही हूँ , ख्यालों के घने जंगल में खुद को गुम हुआ सा पा रही हूँ, अनगिनत पुरानी यादों के सैलाब में बहती सी जा रही हूँ, यह चाँद की चांद्ँनी है ना कुछ याद दिलाती है, यह गाड़ियों का शोर यह हवा की सर सर यह घड़ी की टिक टिक मेरे मन को बेचैन सा किए जाती हैं, क्या.... क्या यह जिदंगी जो मैं जी रही हूँ क्या इस ही कि मुझे तलाश थीं ? यही सवाल मेरे बेचैन मन कौ सता रहा हैं, आखिर कब तु हँसेगी बे वजह फिर से यूं ही खिलखिलाके ए जिदंगी यही सवाल मैं अपनी जिदंगी से किए जा रही हूँ।Download
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