Written By Khushboo Srikoti
हर रोज की तरह आज भी मेरी सुबह अंधेरी थी बाहर सुनेहरे आसमान मे सूरज तो था , पर मानो रोशनी अंधेरी थी लोग अक्सर नयी शुरुआत करते हैं उगते सूरज के साथ , पर मानो मैं पिछले वक्त में ही कहीं जी रही थी वो सुबह बहुत ही अंधेरी थी, जिस रात मेंने अपनी कब्र संजोयी थी टूटी थी कई टुकड़ों में, अपनी भावनाओं की चित्ता संजोयी थी फिर से आशुओं को छुपाती पलकें कहने लगी क्या पाना है तुझे जो खुद को है यूँ खोने लगी सहमी सी बैठी खयाल आया ,आज तो मेरे महादेव का सावन आया सोचा मांग लू फिर से एक बार दुआ में उसको अपनी क्या पता ये सावन खुशीयां लेकर है आया किस मन्दिर, दरगाह किस भगवान से तुझे माँग लाऊ कोनसी मन्नत रखुं , और किस तरह से तुझे चुरा लाऊँ जब सासें थमने लगी , सिसकियां बढने लगी, फिर एक बार उस रब को कोशा आखिर किस जगह आकर ना मांगा था मेंने उसे किन दुआओं में उसका नाम न था है महादेव मेरी लकीरों में क्यों उसका साथ न थाDownload
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